सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग क्या होती है? दिखने में सचमुच की लगने वाली 3D रेडरिंग के लिए हर तरह की जानकारी देने वाली एक गाइड

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग को अक्सर छोटा करके SSS लिखा जाता है। यह स्कैटरिंग तब पाई जाती है जब लाइट किसी ट्रांसलूसेन्ट ऑब्जेक्ट की सर्फ़ेस से होकर गुज़रती है, स्कैटर करती है, फिर किसी और जगह से बाहर निकल जाती है।

rendering of a person glowing under a light in front of a starry sky

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग को अक्सर छोटा करके SSS लिखा जाता है। यह स्कैटरिंग तब पाई जाती है जब लाइट किसी ट्रांसलूसेन्ट ऑब्जेक्ट की सर्फ़ेस से होकर गुज़रती है, स्कैटर करती है, फिर किसी और जगह से बाहर निकल जाती है। 3D ग्राफ़िक्स की रियलिस्टिक लगने वाली रेंडरिंग्स पाने के लिए, खासकर वैक्स, मार्बल, और यहाँ तक कि ह्यूमन स्किन जैसे टेक्सचर्स की कॉपी बनाने के लिए यह प्रॉसेस बेहद ज़रूरी होता है।

एक 3D आर्टिस्ट के रूप में SSS की समझदारी रखने से सचमुच की लगने वाली लाजवाब डिज़ाइन्स बनाना मुमकिन होता है। अगर आपको कैरेक्टर मॉडलिंग करनी है, तो किसी गुड़िया जैसे चेहरे और किसी चलते-फिरते साँस लेते किरदार के बीच का फ़र्क होता है SSS. इस गाइड में, हम बताएँगे कि SSS कैसे काम करता है और इसे अपनी क्रिएशन्स पर कैसे लागू करें।

3D में सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग क्या होती है?

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो लाइट के मटीरियल्स के साथ इंटरैक्ट करने के तरीके को स्टिम्युलेट करती है। किसी चीज़ की सतह से टकराकर बस वापस चले जाने के बजाय, कुछ लाइट उस चीज़ के अंदर चली जाती है, स्कैटर होती है, और अलग-अलग प्वाइंट्स से बाहर निकलती है।

यह 3D लाइटिंग टेक्नीक असल दुनिया में लाइट के बर्ताव की नकल करती है। SSS के बिना, 3D मॉडल्स प्लास्टिक के जैसा दिखते हैं या उनके आर-पार नहीं दिखाई पड़ता। लेकिन SSS को अमल में लाने से चीज़ों की गहराई बढ़ती है और वे असल चीज़ों के ज़्यादा करीब आती हैं। इससे वे दिखने में ज़्यादा मुलायम व चमकदार लगती हैं।

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग के पीछे का साइंस।

जब लाइट किसी चीज़ से टकराती है, तो यह टकराकर वापस चली जाती है, उससे होकर गुज़र जाती है, या गर्मी में बदल जाती है। जब लाइट किसी मटीरियल के अंदर जाती है, तो यह उस चीज़ के माइक्रोस्कोपिक स्ट्रक्चर के आधार पर उसके अंदर हर तरफ़ टकराती रहती है। मटीरियल की फ़िज़िकल प्रॉपर्टीज़ से तय होता है कि उसके अंदर लाइट कितनी गहराई तक जाती है और किस पैटर्न में चलती है।

SSS में, अलग-अलग मटीरियल्स की स्कैटरिंग प्रॉपर्टीज़ एक-दूसरे से अलग-अलग होती हैं। पत्थर जैसी घनी चीज़ में ज्यादा SSS नहीं होगा, जबकि स्किन या वैक्स जैसी चीज़ में ज़्यादा स्कैटरिंग होगी।

3D आर्ट में सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग की क्या अहमियत होती है।

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग से 3D आर्ट पर काफ़ी फ़र्क पड़ता है। असल दुनिया में, लाइट सर्फ़ेसेज़ से टकराकर नहीं उछलती। बल्कि, वह एक मद्धम सा बिखराव पैदा करने के लिए अंदर घुसती है, स्कैटर होती है, और बाहर निकलती है। इसकी नकल करने के लिए, 3D आर्टिस्ट्स SSS का इस्तेमाल स्किन, वैक्स, व मार्बल जैसे मटीरियल्स के रियलिस्टिक सिम्युलेशन के लिए करते हैं।

SSS को 3D आर्ट में कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यह कैरेक्टर डिज़ाइन के लिए बेहद ज़रूरी है। अगर इंसानों व जानवरों पर पीछे से लाइट पड़ रही हो, जैसे कि कानों या उँगलियों से सनलाइट गुज़र रही हो, तो वे दिखने में ज़्यादा असली लगते हैं। प्रॉडक्ट रेंडरिंग के लिए, SSS ट्रांसलूसेन्ट मटीरियल्स जैसे कि लैम्पशेड्स को दिखने में और ज़्यादा कुदरती बना देता है।

3D मॉडल्स के प्लास्टिक जैसे आर्टिफ़िशियल लुक को SSS हटा देता है और उन्हें एक कुदरती चमक देता है जो असली मटीरियल्स से ज़्यादा मिलते-जुलते दिखाई पड़ते हैं।

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग कैसे पेंट करें।

आइए, सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग की पेंटिंग में शामिल स्टेप्स पर एक निगाह डालें:

  1. एक रेफ़रेंस इमेज ढूँढें। रियल-लाइफ़ रेफ़रेंसेज़ से आपको सबसे ज़्यादा रियलिस्टिक SSS सेटिंग्स चुनने में मदद मिलेगी।
  2. सही शेडर चुनें। सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग को सपोर्ट करने वाला मटीरियल या शेडर चुनकर शुरुआत करें।
  3. बेस कलर चुनें। यह आपके ऑब्जेक्ट का मुख्य कलर होगा।
  4. SSS पैरामीटर्स एडजस्ट करें। बिखरी हुई लाइट की गहराई और उसका कलर तय करें। "रेडियस" और "गहराई" जैसे पैरामीटर्स को एडजस्ट करके तय करें कि लाइट कितनी दूर तक जाएगी और स्कैटर की गई लाइट का ह्यू बदलने के लिए "कलर स्कैटर करें"।

असल ज़िंदगी में सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग के इस्तेमाल।

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग एक सामान्य 3D रेंडरिंग को फ़ोटोरियलिस्टिक बना देती है। इससे SSS कई तरह के कामों में व इंडस्ट्रीज़ में एक जानी-मानी टेक्नीक बन चुकी है। मूवी और वीडियो गेम डिज़ाइनर्स रियलिस्टिक स्किन, आँखों, और मुँह वाले कैरेक्टर बनाने के लिए SSS का इस्तेमाल करते हैं। यह प्रॉडक्ट डिज़ाइन में भी काम आती है, जैसे कि फ़र्नीचर पर चमकते हुए मेटल पार्ट्स दिखाने या कॉस्मेटिक्स की ओस जैसी चमक दिखाने के लिए।

अपनी क्रिएशन्स को रोशन करें: Adobe Substance की मदद से सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग।

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग ने 3D कैरेक्टर्स, मॉडल्स, और आर्ट बनाने के पुराने तौर-तरीकों को बदलकर रख दिया है। यह लाइट का बिखराव कर देता है और 3D मॉडल्स को दिखने में ज़्यादा कुदरती बनाता है जिससे आपकी क्रिएशन्स दिखने में ज़्यादा प्रोफ़ेशनल लगती हैं। 3D ग्राफ़िक्स एक्सप्लोर करते समय बस सर्फ़ेस-लेवल लाइटिंग पर न रुकें। अपनी डिजिटल क्रिएशन्स में जान डालने के लिए Adobe Substance 3D में सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग की मदद से नए-नए आइडियाज़ आज़माकर देखें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

गेम्स में सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग क्या होती है?

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग एक रेंडरिंग टेक्नीक है, जो वीडियो गेम कैरेक्टर्स, एनवायरमेंट्स, और ऑब्जेक्ट्स के अंदर लाइट के घुसने और स्कैटर करने के तरीके को सिम्युलेट करती है। यह स्किन, वैक्स, पत्ते, व अन्य चीज़ों को रियलिस्टिक तरीके से दिखाए जाने के लिए एक बेहद ज़रूरी टेक्नीक है।

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग के क्या-क्या असर होते हैं?

सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग के कई असर होते हैं, जिनमें शामिल हैं:

● लाइट व शैडो के बीच के ट्रांसज़िशन्स को मद्धम बनाना

● ग्लोइंग इफ़ेक्ट्स

● गहराई और वॉल्यूम

● स्किन की रियलिस्टिक रेंडरिंग

ट्रांसमिशन और सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग एक-दूसरे से अलग कैसे हैं?

दोनों ही टेकनीक्स में किसी मटीरियल से होकर लाइट गुज़रती है, मगर उनके असर अलग-अलग होते हैं। ट्रांसमिशन तब होता है जब लाइट किसी पतले मटीरियल से होकर गुज़रता है, जैसे कि काँच, जो लाइट को मोड़ देता है या रीफ़्रैक्ट कर देता है। इसमें फ़ोकस इस बात पर होता है कि लाइट किसी चीज़ से होकर चलती है। वहीं सबसर्फ़ेस स्कैटरिंग अलग-अलग सतहों के नीचे लाइट का बिखराव करती है और उसे स्कैटर करती है। इसमें फ़ोकस इस बात पर होता है कि लाइट ऑब्जेक्ट की सतह के नीचे कैसा बर्ताव करती है।

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